एक के बाद एक धमाके होते हैं...लोग मरते हैं...हर बार हमारे प्रधानमंत्री औऱ गृहमंत्री कहते हैं कि हम इसका मुंहतोड जवाब देंगे...हमारे सब्र की परीक्षा मत लो कहते हैं...लेकिन इस सब में अपनों को खो चुके लोगों का दर्द किसी को दिखायी नहीं देता...किसी ने अपना बेटा खोया...किसी ने पिता...किसी ने भाई तो किसी ने अपनी मां व बहन...समय के साथ घाव भरते हैं...लेकिन फिर एक दिन एक औऱ धमाका होता है...औऱ फिर वही हालात...लेकिन किसे फिक्र है इस सब की...उनमें इनका कोई अपना नहीं है ना....
ऐसे हालातों में तो हर चेहरे को देखने पर उस पर ये पंक्तियां लिखी मिलती हैं.....
कब तक आंख रोएगी...कहां तक किसी का गम होगा...
मेरे जैसा तो कोई न...कोई यहां रोज कम होगा...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें