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शनिवार, 31 दिसंबर 2011

राजनीति के कुहासे में गुम हुआ लोकपाल


राजनीति के कुहासे में गुम हुआ लोकपाल


भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल के समर्थन में अन्ना हजारे की मुहिम को मिले जनसमर्थन के बाद  केन्द्र की यूपीए सरकार ने शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल पेश तो कर दिया...लेकिन सरकार का ये बिल उसी के लिए गले की हड्डी बन गया। सरकार ने विपक्ष के भारी विरोध के बाद भी लोकसभा में बहुमत के चलते बिल तो पास करा लिया...लेकिन सरकार राज्यसभा में बिल को पास कराने में ना सिर्फ नाकाम साबित हुई बल्कि रात बारह बजे तक चली बहस के बाद भी सरकार सदन में वोटिंग से ऐन वक्त पर पीछे हट गयी...जिससे लोकपाल बिल राजनीति के कोहरे में खोकर रह गया। सरकार के इस कदम से जहां लोकपाल को लेकर सरकार पर पहले से ही हावी विपक्ष को सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने का एक औऱ मौका मिल गया...वहीं सरकार बिल पास न होने का ठीकरा विपक्षी दलों पर फोडती नजर आयी। पक्ष और विपक्ष भले ही लोकपाल के अधर में लटक जाने के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हों...लेकिन मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि करोडों देशवासियों की भावनाओं से जुडा 2011 का सबसे बडा मुद्दा साल के आखिरी महीने के आखिरी सप्ताह में देश का सबसे बड़ा तमाशा बनकर रह गया। इसे तमाशा नहीं तो औऱ क्या कहा जाएगा...कि जिस बिल के समर्थन में अन्ना हजारे ने ताल ठोकी थी...जिसे देशभर में व्यापक जनसमर्थन मिला...जिस बिल ने सरकार की चूलें हिला कर रख दी...वही बिल साल के आखिरी सप्ताह में अपने अंजाम तक पहुंचते – पहुंचते दम तोड गया। एक बार फिर जहां भ्रष्टाचार से त्रस्त लोगों के चेहरे पर निराशा के भाव हैं...वहीं भ्रष्टाचारियों के चेहरे खिले हुए हैं। सवाल बहुत सीधा सा है कि जिस सरकारी लोकपाल का शुरू से ही विरोध हो रहा था...इस सब को जानते हुए भी सरकार ने उसी बिल को संसद में पेश किया...औऱ जैसा कि अनुमान था लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल भाजपा सहित विपक्षी पार्टियों ने बिल का खुलकर विरोध कर इसमें संशोधन की मांग की। हमारे कुछ नेता तो बिल से इतने भयभीत थे कि बिल के पक्ष में ही नहीं थे...संशोधन तो दूर की बात है। हालांकि सरकार ने बहुमत में होने के चलते लोकसभा में तो बिल पास करा लिया...लेकिन राज्यसभा में बहुमत में न होने से सरकार को विपक्ष का भारी विरोध झेलने के बाद अपने पैर पीछे खींचने पडे। जिससे बिल एक बार फिर से अधर में लटक गया...औऱ भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई लडाई भी राजनीति के कुहासे में खो गयी। रही सही कसर टीम अन्ना के आंदोलन से अचानक कदम पीछे खींचने से पूरी हो गयी...हालांकि टीम अन्ना ने पांचों राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में जनवरी – फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस औऱ बिल का विरोध करने वाले दूसरे राजनैतिक दलों के खिलाफ प्रचार कर अपना आंदोलन जारी रखने की बात कही है। बहरहाल लोकपाल को लेकर छाया कुहासा फिलहाल जल्द छंटने के कोई आसार नहीं है...ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में टीम अन्ना की ये मुहिम कितना रंग लाती है...ये तो चुनाव में भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा त्रस्त मतदाता ही तय करेंगे। उम्मीद करते हैं देश के सबसे जरूरी मुद्दे पर सरकार औऱ राजनैतिक दलों के सुपरहिट तमाशे का फल जनता उन्हें जरूर देगी...औऱ ईमानदार औऱ स्वच्छ छवि वाले नेता के हाथों में देश का भविष्य होगा...औऱ भष्टाचारियों को मुंह की खानी पडेगी।

दीपक तिवारी
8800994612 

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

लोकपाल से नहीं...खुद से खत्म होगा भ्रष्टाचार


लोकपाल से नहीं...खुद से खत्म होगा भ्रष्टाचार
 

अन्ना कहते हैं कि सशक्त लोकपाल से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी...भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे होंगे...जबकि संसद में सरकार द्वारा पेश लोकपाल कमजोर है औऱ इसमें भ्रष्टाचारियों के बच निकलने का रास्ता है। सरकार कहती है संसद में पेश लोकपाल को सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद तैयार किया गया है...औऱ ये भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में कारगर साबित होगा...वहीं मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत दूसरी पार्टियां अपने – अपने तर्क देकर संसद में पेश लोकपाल का विरोध कर रहे हैं...लेकिन इस बीच जनमानस के मन में क्या चल रहा है...वो क्या चाहता है...इसका इल्म किसी को नहीं है...लोगों के मन में अभी भी इसको लेकर संशय बरकरार है...कुछ लोग सोचते हैं कि सशक्त लोकपाल बन जाने से भ्रष्टाचार एकदम से खत्म हो जाएगा...जबकि कुछ लोग मानते हैं कि सशक्त लोकपाल आने के बाद भी भ्रष्टाचार पर बहुत ज्यादा लगाम नहीं लग पाएगी। कुल मिलाकर देखा जाए तो चाहे अन्ना जैसा चाहते हैं वैसा लोकपाल आए या फिर सरकारी लोकपाल...आमजन को इससे बहुत ज्यादा सरोकार नहीं है...इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकपाल के समर्थन में अन्ना कि मुहिम को देशभर में व्यापक जनसमर्थन मिला...लेकिन सवाल ये भी उठता है कि महज़ लोकपाल बिल पास हो जाने भऱ से भ्रष्टाचार हिंदुस्तान से खत्म हो जाएगा...भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे पहुंच जाएंगे...इसका जवाब देना आपके लिए भी हो सकता है थोडा मुश्किल हो...लेकिन अगर मुझसे इसका जवाब पूछा जाए तो मेरा जवाब होगा...नहीं। निश्चित तौर पर हर कोई चाहता है कि भ्रष्टाचार रूपी रावण का दहन हो...औऱ भ्रष्टाचारियों को सजा मिले...हर कोई चाहता है कि सरकारी दफ्तर में बिना रिश्वत दिए उसका काम हो जाए...अपने किसी काम के लिए सरकारी दफ्तर में उसे अपनी चप्पलें न घिसनी पडे...लेकिन यहां पर मुझे ये कहने में बिल्कुल भी हिचक नहीं होगी कि जिस भ्रष्टाचार से वह निजात पाना चाहता है...असल में उसकी सबसे बडी वजह भी तो वही है...क्योंकि जब आप सरकारी दफ्तर में अपने किसी काम के लिए जाते हैं तो आप चाहते हैं कि आपका काम आसानी से हो जाए...जल्दी हो जाए...इसके लिए आपको ज्यादा परेशानी न उठाना पडे...औऱ वह आप ही तो हैं जो इसके लिए सामने बैठे कर्मचारी – अधिकारी से जल्दी काम करवाने के तरीके पूछते हैं और मिठाई के नाम पर लेनदेन की बात करते हैं। जब तक जनमानस खुद नहीं ठान लेगा कि वह अपने काम को पूरी ईमानदारी से करेगा औऱ अपने किसी काम के लिए किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का सहारा नहीं लेगा...किसी सरकारी कर्मचारी – अधिकारी को रिश्वत नहीं देगा...तब तक एक प्रतिशत भ्रष्टाचार भी देश से कम नहीं होने वाला...फिर चाहे अन्ना का लोकपाल आए या फिर सरकारी लोकपाल...तस्वीर नहीं बदलने वाली। अरे साहब भ्रष्टाचार के खिलाफ महज शुरूआत तो कीजिए...बदलाव आएगा...किसी लोकपाल का इंतजार मत कीजिए...ये कोई जादू कि छडी नहीं है जो किसी पर चले औऱ वह ईमानदार हो जाए...और वैसे भी जिन लोगों के कंधे पर लोकपाल के माध्यम से भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई का जिम्मा रहेगा वे भी तो इंसान ही है...हो सकता है कहीं उनका ईमान भी डगमगा जाए...जैसा कहते हैं ना – अगर गल ही रूलाती है...तो राहें भी दिखाती है...मनुज गलती का पुतला है...जो अक्सर हो ही जाती है...। अब तक जो गलतियां हुई उन्हें पीछे छोडो...औऱ भ्रष्टाचार औऱ भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज बुलंद करो...निश्चित तौर पर तस्वीर बदलेगी...एक कदम तो आगे बढ़ाईये।

दीपक तिवारी
8800994612

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

लोकपाल का डर

लोकपाल का डर



लोकपाल को लेकर हो हल्ला मचा है...सडक से लेकर संसद तक एक ही चर्चा है...अखबार से लेकर टीवी तक एक ही खबर छायी हुई है...लोकपाल...अन्ना कहते हैं कि सशक्त लोकपाल आए...प्रधानमंत्री औऱ सीबीआई इसके दायरे में रहें...आम आदमी का सबसे ज्यादा पाला पडने वाले ग्रुप सी औऱ डी के कर्मचारी इसके दायरे में रहें...अन्ना का इसके पीछे तर्क है कि यह सब लोकपाल में होगा तो भ्रष्टाचार औऱ भ्रष्टाचारियों पर काफी हद तक लगाम लग सकेगी...अब लोकपाल बिल पास होने के बाद इसका कितना असर होगा ये तो समय ही बताएगा...लेकिन लोकपाल के जिन्न ने देश की राजनीति में भूचाल जरूर ला दिया है...एक अनजाना सा खौफ हमारे देश के राजनेताओँ पर छाया हुआ है...देश की राजनीति में खासा दखल रखने वाले दो बडे राज्य यूपी औऱ बिहार के कद्दावर नेता मुलायम सिंह औऱ लालू प्रसाद यादव ने तो इसके खिलाफ संसद में ही आवाज बुलंद कर दी है...मुलायम सिंह कहते हैं कि लोकपाल बिल पास हो गया तो एक मामूली सा दारोगा भी उन्हें जेल भेज देगा...कलेक्टर औऱ एसपी उनकी इज्जत नहीं करेंगे...यहां लालू भी मुलायम सिंह का समर्थन करते दिखे...हम कहते हैं...अरे साहब ऐसा काम ही क्यों करते हो कि कोई दारोगा आपको जेल भेजे...कलेक्टर और एसपी आपकी इज्जत न करें...कहीं न कहीं आपके मन में चोर है इसलिए शायद आप लोकपाल के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर रहे हैं...इतने ही ईमानदार आप होते तो एक सशक्त लोकपाल का समर्थन नहीं करते...।
ये तो रही बात यूपी औऱ बिहार के दो महानुभावों कि...बात अगर करें हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी की...क्या वाकई में हमारे देश के प्रधानमंत्री ईमानदार हैं...किसी भी तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं हैं...अरे साहब हम तो कहते हैं कि अगर वाकई में ईमानदार हो...ईमानदारी से देश सेवा कर रहे हो तो फिर डर काहे का...ले आओ न सशक्त लोकपाल...खैर कसूर आपका भी नहीं है...आपकी भी मजबूरी है...आपका तो खुद बुरा हाल है...कहते हैं ना...मुझे दुनिया वालो शराबी न समझो...मैं पीता नहीं हूं पिलायी गयी है...आपको पिलाने वाला तो कोई औऱ ही है...।
केन्द्रीय कैबिनेट की मंजूरी के बाद सरकार लोकपाल बिल को संसद में पेश करने जा रही है...इसके लिए संसद का सत्र भी 29 दिसंबर तक बढाया गया है...सरकार के लोकपाल को लेकर जहां टीम अन्ना ने आंखे तरेर रखी हैं...वहीं मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत अन्य पार्टियों ने भी इसको लेकर कमर कस ली है...औऱ संसद में इस पर जमकर तकरार होने के आसार हैं...।
अब लोकपाल की इस लडाई में जीत किसकी होती है ये तो समय ही बताएगा...लेकिन निश्चित तौर पर लोकपाल का भय़ बिल के पास होने से पहले ही भ्रष्टाचारियों पर दिखाई देने लगा है...उम्मीद करते हैं कि एक सशक्त लोकपाल आए औऱ भ्रष्टाचार में नित नये रिकार्ड बनाते हिंदुस्तान की तस्वीर बदले।


दीपक तिवारी
08800994612
deepaktiwari555@gmail.com

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

जूतम - पैजार


जूतम - पैजार


पिछले कुछ समय से जूते का चलन बढता जा रहा है....फर्क सिर्फ इतना है कि पहले जूता सिर्फ पैर में नजर आता था.....लेकिन अब जूता हाथों में हथियार के रूप में नजर आता है...इसका पहला फायदा तो ये है कि आसानी से आप जूते को कडी से कडी सुरक्षा वाली जगह पर ले जा सकते हैं...और मौका मिलने पर भरी सभा में सामने वाले की ईज्जत उतार सकते हैं...औऱ इससे सामने वाले को ऐसी चोट लगती है....कि शायद ही सामने वाले इसका दर्द कभी भूल पाये।
जूता मारने की परंपरा तो बरसों से रही है...कभी चोरी करते पकडे गये किसी चोर को जुतिआया जाता रहा है...तो कभी मनचलों की जूतम- पैजार होती आयी है...लेकिन सबसे पहले जूता रूपी अस्त्र तब सुर्खियों में आया जब ईराक में जॉर्ज बुश पर चला था जूता। पत्रकार मुंतज़र-अल-जैदी ने सबके सामने एक के बाद दो जूते दे मारे थे बुश पर लेकिन किस्मत अच्छी थी कि बच गए बुश।
इसके बाद हिंदुस्तान में भी पत्रकार मुंतज़र-अल-जैदी का फार्मूला खूब हिट हुआ औऱ जूता बन गया नया हथियार...इसके पहले शिकार बने हमारे गृहमंत्री पी चिदंबरम...फिर बारी थी बरसों से पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी की...हथियार रूपी जूते का ये सिलसिला यहीं नहीं रूका समय – समय पर इसका भरपूर उपयोग होता रहा...कभी कांग्रेस नेता जनार्दन द्रिवेदी तो कभी सांसद नवीन जिंदल पर...हाल ही में टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल इसके ताजा – ताजा शिकार बने हैं...ज्यादातर मामलों में जूता मारने वालों को इसके शिकार नेताओं ने माफ कर बडप्पन दिखाने का प्रयास किया...लेकिन इसका दर्द शायद ही उनके दिल से कभी जाए...।
लेकिन कुल मिलाकर पैरों की शान बढाने वाला जूता जाने कब किसके सिर का ताज बन जाए...कहना मुश्किल है। कभी दूसरों को अपने जूते की नोंक में रखने वाले नेताओं के लिए इसी जूते का भय सताने लगा है।  
एक कहावत आपने भी शायद सुनी होगी कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते...ये बात अब शायद आमजनता को भी समझ आ गयी है...इसलिए भ्रष्ट नेताओं को सबक सिखाने लोगों ने लातों का ना सही जूते का इस्तेमाल बेधडक शुरू कर दिया है...शायद जूतम – पैजार के डर से ही सही भ्रष्ट नेताओं को थोडी अक्ल आ जाए।




दीपक तिवारी
deepaktiwari@khabarbharti.com
08800994612

बुधवार, 14 सितंबर 2011

हिंदी हैं हम वतन से....

हिंदुस्तान में हिंदी की दुर्दशा देखते हुए 1947 से पहले का अग्रेजों भारत छोडो का नारा याद आता हैकैसे अंग्रेजों को आखिर भारत को छोड कर जाना पडा थालगता है अब फिर से जरूरत है ऐसे ही एक नारे की...अंग्रेजी भारत छोडोलेकिन हिंदुस्तान में ऐसा संभव नहीं दिखता क्योंकि यहां हर सरकारी कार्यालय में हिंदी दिवस तो मनाया जाता है...लेकिन इसके लिए आदेश अंग्रेजी मे जारी किय़े जाते हैं
हमारे देश के प्रधानमंत्री औऱ सर्वोच्च पद पर बैठे लोग हिंदी बोलने में अपनी तौहीन समझते हैं...तो क्या इन्हें हक है हिंदुस्तान में सर्वोच्च पदों पर आसीन होने का...
मेरा कहने का मतलब य़े नहीं कि आप अंग्रेजी को पूर्णत: विसर्जित कर दें...बल्कि अपने अधिक से अधिक काम हिंदी में करने की आदत डालें...शायद हम आम हिंदुस्तानी हिंदी का कुछ मान बचा पाएं...हमारे देश के प्रधानमंत्री को तो शायद शर्म आती है हिंदी बोलने में...आपने सुना है कभी उन्हें हिंदी बोलते हुए...
?
इसी उम्मीद में कि ये पंक्तियां वाकई में सार्थक हों...हिंदी हैं हम...हिंदी हैं हम वतन से हिंदोस्तान हमारा...आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...जय हिंदुस्तान....जय हिंदी

दीपक तिवारी


गुरुवार, 8 सितंबर 2011

एक औऱ धमाका....



एक के बाद एक धमाके होते हैं...लोग मरते हैं...हर बार हमारे प्रधानमंत्री औऱ गृहमंत्री कहते हैं कि हम इसका मुंहतोड जवाब देंगे...हमारे सब्र की परीक्षा मत लो कहते हैं...लेकिन इस सब में अपनों को खो चुके लोगों का दर्द किसी को दिखायी नहीं देता...किसी ने अपना बेटा खोया...किसी ने पिता...किसी ने भाई तो किसी ने अपनी मां व बहन...समय के साथ घाव भरते हैं...लेकिन फिर एक दिन एक औऱ धमाका होता है...औऱ फिर वही हालात...लेकिन किसे फिक्र है इस सब की...उनमें इनका कोई अपना नहीं है ना....

ऐसे हालातों में तो हर चेहरे को देखने पर उस पर ये पंक्तियां लिखी मिलती हैं.....


कब तक आंख रोएगी...कहां तक किसी का गम होगा...

मेरे जैसा तो कोई न...कोई यहां रोज कम होगा...

बुधवार, 24 अगस्त 2011

लोकपाल औऱ जनलोकपाल


लोकपाल औऱ जनलोकपाल

समाजसेवी अन्ना हजारे औऱ उनकी टीम ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए जनलोकपाल बिल का मसौदा तैयार कर इसे लागू करने को लेकर अपना आंदोलन शुरू किया...इसकी शुरूआत अन्ना एंड टीम ने अप्रेल 2011 में जंतर मंतर से की थी...जिसके बाद सरकार ने स्टैंडिंग कमेटी का गठन किया...जिसमें अन्ना एंड टीम भी शामिल थी...लेकिन यहां पर भी बात नहीं बनी...औऱ सरकार ने अन्ना एंड टीम की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए सरकारी लोकपाल बिल ड्राफ्ट किया। जिसके विरोध में 16 अगस्त से शुरू हुआ अन्ना का आंदोलन किस तरह जनांदोलन बन गया...इसे बताने की जरूरत नहीं है। इसी बीच अरूणा रॉय ने भी एक बिल ड्राफ्ट किया।

एक नजर सरकारी लोकपाल, जनलोकपाल औऱ अरूणा रॉय के लोकपाल पर....

सरकारी लोकपाल
जनलोकपाल
अरूणा रॉय लोकपाल
सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर खुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा।
प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी भी मामले की जाँच शुरू करने का अधिकार रखता है।
राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निवारण लोकपाल- इसके दायरे में प्रधानमंत्री को कुछ शर्तो के साथ लाया जाए. प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला चलाने का फैसला लोकपाल की पूर्ण पीठ करे और सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ अनुमोदन करे. सांसद और वरिष्ठ मंत्री लोकपाल के दायरे में रहें.
सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्शदात्री संस्था बन कर रह जाएगी।
जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी।
पृथक न्यायपालिका लोकपाल- न्यायपालिका के लिए अलग से.

सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी।
जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फोर्स भी होगी।
केंद्रीय सतर्कता लोकपाल- दूसरी व तीसरी श्रेणी के अफसरों के भ्रष्टाचार के लिए सतर्कता आयोग को ही और अधिक ताकतवर बनाया जाए.

सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा।
जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे।
लोकरक्षक कानून लोकपाल- भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले लोगों की सुरक्षा मुहैया कराने के लिए.
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे।
जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा। चार की कानूनी पृष्टभूमि होगी। बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा।
शिकायत निवारण लोकपाल-जन शिकायतों के जल्द निपटारे लिए है.
सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति। प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, कानून और गृहमंत्री होंगे।
प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे।


सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सजा हो सकती है और घोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है।

जनलोकपाल बिल में कम से कम पाँच साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है। साथ ही दोषियों से घोटाले के धन की भरपाई का भी प्रावधान है।



राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करती...जिस कानून को आजादी के वक्त अस्तित्व में आ जाना चाहिए था...उसका इंतजार 1969 से हो रहा है। अब जाकर इस कानून के लिए गंभीरता दिख रही है...उसमें भी सरकार गेंद अपने पाले में रखना चाहती है। सरकार चाहती है कि प्रधानमंत्री औऱ न्यायपालिका को इसके दायरे से बाहर रखा जाए...लेकिन अन्ना एंड टीम के जनलोकपाल में प्रधानमंत्री औऱ न्यायपालिका दोनों को इसके दायरे में लाने की बात कही गयी है...यही बात अरूणा रॉय ने भी अपने बिल में कही है। मेरा मानना है कि हिंदुस्तान में भ्रष्टाचार सारी सीमाएं पार कर चुका है...औऱ आम जनता इसे बुरी तरह त्रस्त है...इसलिए जब अन्ना हजारे ने जनलोकपाल के लिए लड़ाई का शंखनाद किया तो देशवासियों ने इसे हाथों हाथ लिया...औऱ देशभर में हर वर्ग औऱ आयु के लोग तिरंगा हाथ में लेकर अपने – अपने तरीके से इसका समर्थन कर रहे हैं। लोग भले ही इसे भीड का नाम दे रहे हैं...लेकिन ये भीड नहीं भ्रष्टाचार औऱ भ्रष्टाचारियों के खिलाफ वो जनाक्रोश है...जो लंबे समय से किसी शांत ज्वालामुखी की तरह फटने का इंतजार कर रहा था...अगर सरकार झुकती है...जिसके आसार भी नजर आ रहे हैं...औऱ जनलोकपाल को पूरी तरह से सरकार स्वीकार कर संसद में पेश भी करती है...औऱ ये पारित होकर कानून बनता है तो भी मुझे नहीं लगता कि भ्रष्टाचार पर पूरी तरह अंकुश लग पाएगा...या भ्रष्टाचारी इससे तौबा कर लेंगे...क्योंकि जब तक आम लोग पूरी तरह इसका विरोध नहीं करेंगे...औऱ ठान लेंगे कि वे अपने किसी काम के लिए रिश्वत नहीं देगे...भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं देंगे...तब तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकलेगा। इसलिए जरूरत है हर किसी को अपने अंदर वो इच्छाशक्ति पैदा करे कि भ्रष्टाचार अपना सिर ही न उठा सके। जनलोकपाल कानून बन भी जाता है तो ये तभी सार्थक होगा...जब देश के हर एक नागरिक इसकी ताकत को समझे...औऱ जिस दिन वे ये समझ जाएंगे...उस दिन एक हद भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकेगा।  


दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com



मैं भी अन्ना...तू भी अन्ना...अब तो सारा देश है अन्ना...




मैं भी अन्ना...तू भी अन्ना...अब तो सारा देश है अन्ना...
हाथ में लेकर तिरंगा...हर कोई लगता है अन्ना...
जनलोकपाल से डरने वाले भागो...जहां जाओगे पाओगे अन्ना...
मैं भी अन्ना...तू भी अन्ना...अब तो सारा देश है अन्ना...
निकल पड़े हैं लेकर तिरंगा...अब नहीं है हमें रूकना...
बनकर अन्ना बढ रहे हैं आगे...जनलोकपाल को लागू करवाने...
मैं भी अन्ना...तू भी अन्ना...अब तो सारा देश है अन्ना...
चाहे मारो लाठी-गोली...चाहे भेजो हमको जेल...
आगे बढ़कर अपना हक छीनेंगे...भ्रष्टाचारियों को नहीं छोड़ेंगे...
मैं भी अन्ना...तू भी अन्ना...अब तो सारा देश है अन्ना...

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

अफजल....कसाब औऱ......

अफजल....कसाब औऱ......



मुंबई पर एक बार फिर से आतंकी हमला....तीन अलग – अलग जगहों पर 18 मासूम असमय ही मौत के मुंह में समा जाते हैं....औऱ 100 से ज्यादा लोग अस्पताल में जिंदगी औऱ मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं....ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री मुंबई जाते हैं....एक बार फिर से दोहराते हैं....मुंबई के दोषी बचेंगे नहीं....असल में प्रधानमंत्री जी कहना चाहते हैं...कि दोषियों को हर हाल में गिरफ्तार किया जाएगा....उन पर बकायदा मुकदमा चलाया जाएगा...इस दौरान उन्हें कडी सुरक्षा दी जाएगी....ताकि कोई उन्हें छू भी नहीं सके.....हमारे देश में हर किसी के साथ न्याय होता है...औऱ गिरफ्तार आतंकियों को केस लडने के लिए वकील उपलब्ध कराया जाएगा.....उम्मीद है दो से चार साल इसी तरह गुजर जाएंगे...जिसका जीता – जागता उदाहरण है....मुंबई का ही एक औऱ गुनहगार कसाब। इस सब के बाद अगर कोर्ट गिरफ्तार आतंकियों को धमाकों में मारे गये मासूम लोगों की मौत का दोषी ठहराते हुए सजा सुनाता है...तो आतंकियों के पास फिर भी उच्च न्यायालय औऱ सर्वोच्च न्यायालय में सजा के खिलाफ अपील करने का मौका रहेगा....यहां पर भी अगर सजा बरकरार रहती है....तो भी आतंकी राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं....जैसा कि संसद में हमले के आरोपी अफजल के मामले में हुआ....औऱ माननीय राष्ट्रपति उस पर कब तक फैसला लेतीं हैं....ये शायद किसी को नहीं पता.....। लेकिन उनका क्या....जिनके अपने असमय ही इन धमाकों की भेंट चढ गये...किसी के सिर से पिता का साया उठा....तो किसी की मांग का सिंदूर उजड गया....किसी ने रक्षा बंधन से पहले अपने भाई को खो दिया....तो किसी ने अपने बुढापे का सहारा....वैसे भी इंसान की याददाश्त बडी कमजोर होती है.....बेबस लोग कर भी क्या सकते हैं.....रोजी रोटी की जद्दोजहद में इतना समय ही कहां कि न्याय के लिए सडकों पर उतरें....कुछ दिन रोते हैं....औऱ जब आंसू सूखने के साथ ही अपनों की यादें धुंधली पड जाती हैं....तो जुट जाते हैं...अपने कल की चिंता में...लेकिन वे लोग उस कल को देख पाएंगे....ये शायद उनको भी नहीं पता....हां उनके आज को उनसे छीनने वाले जरूर ऐशो आराम की जिंदगी काट रहे हैं....। क्या कभी मासूमों के खून की होली खेलने वालों को वाकई में सजा होगी....या फिर संसद पर हमले के आरोपी अफजल औऱ 26/11 के गुनहगार कसाब की तरह आगे भी खून की होली खेलने वाले इसी तरह लोगों को मुंह चिढाते रहेंगे.....ये सवाल किसी एक का नहीं हर उस भारतवासी का है....जिसकी भारत मां के आंचल को आतंकियों ने मासूमों के खून से रंगा है। प्रधानमंत्री जी घटना के बाद घटनास्थल पर पहुंचकर सांतव्ना देकर....घटना की जांच की बात कहकर आप अपना पल्ला नहीं झाड सकते....किसी की मौत का दुख वही समझ सकता है....जिसने किसी अपने को खोया हो....चलिए आपकी बात मान भी लेते हैं कि गुनहगारों को बख्शा नहीं जाएगा....माना दोषी गिरफ्त में आ भी जाते हैं...औऱ उनको सजा भी होती है....तो क्या गारंटी है कि वे दूसरे अफजल औऱ कसाब नहीं बनेंगे। इसका जवाब आपके पास हो तो जरूर बताइयेगा....सारा देश इसे जानने के लिए उत्सुक है....।


दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com    

बुधवार, 13 जुलाई 2011

जागो मनमोहन जागो

जागो मनमोहन जागो

एक बार फिर से.....वही हुआ जिसका डर था.....शायद हमारी सरकार को इसी का इंतजार था...हम पडोसी देश में पनप रहे आतंकवाद व आतंकियों पर कारवाई की बात ही दोहराते रह गये....आतंकियों को हमें सौंपने के लिए सूची ही बनाते रह गये औऱ आतंकियों ने बडी ही आसानी से एक बार फिर से हमारे ही घर में घुसकर एक के बाद एक तीन धमाके कर जता दिया....कि हम तो बेगुनाहों के खून से होली खेलेंगे....शायद आतंकी भी ये बात अच्छी तरह से समझते होंगे की हिन्दुस्तान की सरकार उनका कुछ नहीं बिगाड सकती.....हां इन धमाकों के बाद जरूर आतंकियों औऱ उनको पनाह देने वालों को चेतावनी देकर कि.....हमें कमजोर न समझना.....हम इसका कडा जवाब देंगे.....कहकर अपना पल्ला झाड लेगी। वैसे भी जिस देश का प्रधानमंत्री अपने सहयोगियों के खिलाफ कारवाई करने को लेकर खुद को मजबूर कह सकता है....वह अपने देशवासियों की रक्षा कैसे करेगा....या इसके लिए क्या कदम उठाएगा। हम अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को  दी जाने वाली मदद को लेकर जरूर अमेरिका के दोहरे चरित्र की बात करते हैं...लेकिन मेरा ये मानना है कि वहां के सर्वोच्च पर बैठा व्यक्ति हमारे देश के प्रधानमंत्री की तरह कमजोर नहीं है....वह 09/11 जैसी घटनाओं के बाद सिर्फ बदला लेने की बातें नहीं करता...बल्कि आतंकियों को पनाह देने वालों के घर में घुसकर उसे मौत के घाट उतारता है....शायद यही फर्क है कि बैखौफ आतंकी हमेरे घर में घुसकर एक के बाद एक वारदात को अंजाम दे रहे हैं...औऱ निर्दोष देशवासियों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड रही है....। सवाल ये है कि आखिर कब तक....ये सिलसिला चलता रहेगा....हम क्यों नहीं निर्दोष लोगों के खून से होली खेलने वालों को मुंहतोड जवाब देते....????.....क्या मनमोहन सरकार एक बार फिर से अमेरीका के 09/11 या फिर मुंबई के 26/11 के काले इतिहास को आतंकियों द्वारा दोहराए जाने का इंतजार कर रही है....???...या फिर आर्थर रोड जेल में आराम की जिंदगी जी रहे 26/11 के गुनहगार कसाब को जेल से छुडाने के लिए आतंकियों द्वारा किसी प्लेन को हाईजेक करने का इंतजार कर रही है....??? अभी भी समय है....जाग जाओ.....कहीं देर न हो जाए.......औऱ ऐसी किसी घटना के होने पर देशवासियों को फिर आपके श्रीमुख से सुनना पडे कि हमें अपने देशवासियों की जान की चिंता है....इसलिए हम आतंकियों की मांगों को मानते हुए 26/11 के गुनहगार कसाब को आतंकियों के हाथों में सौंपने जा रहे है.....जिन्हें हमारे जांबाज अफसरों औऱ जवानों ने अपने जान की बाजी लगाकर गिरफ्तार किया था।


दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com

रविवार, 12 जून 2011

सवाल नीयत का है


सवाल नीयत की है

विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने को लेकर नौ दिनों से अनशन कर रहे बाबा रामदेव ने भले ही श्री श्री रविशंकर, कृपालु महाराज और मुरारी बापू के अनुरोध के बाद अपना अनशन समाप्त कर दिया हो....लेकिन नौ दिनों तक चले बाबा के सत्याग्रह ने यूपीए सरकार की नीयत पर जरूर सवालिया निशान लगा दिया है...जो आने वाले दिनों में यूपीए सरकार की परेशानी का सबब बन सकते हैं। नौ दिन पहले दिल्ली के रामलीला मैदान से सत्याग्रह शुरू करने वाले योगगुरू बाबा रामदेव का अनशन पहले दिन से ही भारी उतार – चढाव भरा रहा। सत्याग्रह शुरू होने के साथ ही जहां रामलीला मैदान में बाबा के समर्थकों का जमावडा लगना शुरू हो गयी था....वहीं बाबा के सत्याग्रह से घबराई यूपीए सरकार ने बाबा को मनाने की हरसंभव कोशिश की....इस बीच सरकार औऱ बाबा में सहमति बनने के आसार भी दिखे....लेकिन बाबा रामदेव की चिट्टठी का हवाला देते हुए यूपीए ने बाबा के सत्याग्रह को ढोंग करार देने की भी कोशिश की....जिसके बौखलाए बाबा ने सरकार पर उनकी मांगों पर सहमति के नाम पर धोखा देने का आरोप लगाया....औऱ इसके बाद रात के अंधरे में रामलीला मैदान में जो हुआ उसे पूरे देश ने देखा। देशभर में जहां बाबा रामदेव व उनके समर्थकों पर रामलीला मैदान में हुई पुलिसिया कारवाई को लेकर यूपीए सरकार की तीखी आलोचना हुई....वहीं बाबा के विरोधियों ने भी बाबा पर जमकर शब्दों के बाण छोडे। अब जब बाबा ने अपना अनशन समाप्त कर दिया है....तो इन नौ दिनों तक अंदर ही अंदर घबराई यूपीए सरकार ने जरूर राहत की सांस ली होगी....लेकिन ये नौ दिन सरकार की नीयत को जनता के सामने उजागर कर गये....जिसका भारत की राजनीती पर दीर्घकालीन असर पडेगा।
सवाल ये है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर भष्टाचारियों के खिलाफ कारवाई करने का दम भरने वाली यूपीए सरकार क्या वाकई में विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने को लेकर गंभीर थी....अगर हां तो क्यों सरकार ने अभी तक क्यों इसको लेकर कोई कारगर कदम नहीं उठाया....लेकिन लगता है कि शायद यूपीए सरकार को डर था कि अगर बाबा की मांगों पर अमल किया गया तो इसके छींटे उसके दामन में भी पडते....यानि कि सरकार की नीयत पहले दिन से ही काले धन को वापस लाने को लेकर साफ नहीं थी। अपनी नीयत में खोट के चलते पहले दिन से ही जहां यूपीए सरकार बाबा रामदेव के सत्याग्रह से डरी हुई थी....औऱ उसने इस सत्याग्रह को परदे पर आने से रोकने के लिए पुरजोर कोशिश भी की....औऱ जब वह इसमें सफल नहीं हुई तो जबरन रात के अंधेरे में सत्याग्रह का दमन कर दिय़ा गया।
इससे बडा उदहारण औऱ क्या होगा कि नौ दिनों तक चले बाबा रामदेव के अनशन के दौरान एक बार भी यूपीए सरकार को बाबा की सुध लेने की फुर्सत नहीं थी....हां यूपीए में शामिल कांग्रेस व उसके घटक दलों के नेताओं के पास मीडिया में बाबा के खिलाफ बयानबाजी करने की फुर्सत जरूर थी। इस दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली देश की जनता का ध्यान भटकाने के लिए बाबा रामदेव को ही उनकी संपत्ति को लेकर उन्हें सवालों में घेरने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोडी। निश्चित तौर पर अगर बाबा रामदेव ने गलत तरीके से अपनी संपत्ति अर्जित की है तो उसकी भी जांच होनी चाहिए...लेकिन अपना – अपना दामन बचाने के चक्कर में असली सवाल पीछे छूटता दिखाई दे रहा है।  
बहरहाल काले धन को लेकर सत्याग्रह शुरू करने वाले बाबा अपने मिशन में कितने सफल होते हैं, ये तो समय ही तय करेगा...लेकिन सत्याग्रह के जरिए बाबा ने देशभऱ में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो माहौल तैयार किया....औऱ इसे आम लोगों का जो जनसमर्थन मिला इसने एक बात तो साफ कर दी कि भ्रष्टाचार से आम आदमी त्रस्त हो चुका है.....साथ ही इस मुद्दे को लेकर जिस प्रकार केन्द्र सरकार ने असंवेदनशीलता दिखाई है...उसने सरकार की नीयत पर से पर्दा उठा दिया है....ऐसे में फैसला जनता को करना है कि देश से भ्रष्टाचार को मिटाने के प्रति उसकी नीयत क्या है...     औऱ उम्मीद है जनता भष्टाचार औऱ भ्रष्टाचारियों को अपनी नीयत का अंदाजा लोकतंत्र के माध्यम से ही वाकिफ कराएगी।  

दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com